Monday, October 24, 2022

भोंगापाल

                                           भगवान  बुद्ध  


भोंगापाल में खुदायी में प्राप्त बौद्ध चैत्यगृह तथा मंदिरों के भग्नावशेष  बस्तर में बौद्ध भिक्षुओं के आवागमन तथा निवास के प्रमाणों को पुष्टि प्रदान करते हैं।भोंगापाल जहां खुदाई में बौद्धकालीन चैत्य मंदिर, सप्त मात्रीका मंदिर और शिव मंदिर के भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं, कोंडागांव जिले के केशकाल और कोंडागांव के मध्य स्थित फरसगांव से 16 किलोमीटर पश्चिम में बड़े डोंगर से आगे ग्राम भोंगापाल
स्थित है। भोंगापाल से तीन किलोमीटर दूर तमुर्रा नदी के तट पर एक टीले में विशाल चैत्य मंदिर सप्तमातृका मंदिर और शिव मंदिर के भग्न अवशेष प्रापत हुए हैं। बौद्ध प्रतिमा टीले को यहां के स्थानीय लोग डोकरा बाबा टीला के नाम से भी जानते हैं !! 
सप्त मात्रीका  टीला या रानी टीला, बौद्ध प्रतिमा टीला से 200 गज की दूरी पर स्थित है। इसके अतिरिक्त यहां एक बड़ा शिव मंदिर एवं अन्य प्राचीन मंदिरों के भग्नावशेष हैं  किन्तु उनकी कोई प्रतिमा प्राप्त नहीं हुई है!!यहां से प्राप्त बौद्ध चैत्य तथा प्राचीन मंदिर 5-6वीं शताब्दी के हैं। चैत्य मंदिर का निर्माण एक ऊंचे चतूबरे पर किया गया है। मंदिर पूर्वाभिमुखी है। इस चबूतरे के मंदिर के भग्नावशेषों का पिछला हिस्सा अद्र्ध-वृत्ताकार है जिस पर मंदिर का गर्भगृह, प्रदक्षिणा पथ, मंडप तथ देवपीठिका के भग्नावशेष हैं। यह कहा जा सकता है कि संभवत: यह बौद्ध भिक्षुओं का निवासस्थल रहा होगा!! खुदाई से पहले यहां एक विशाल बौद्ध प्रतिमा प्राप्त हुई थी। यह प्रतिमा प्राचीन होने के साथ-साथ खंडित अवस्था में है। चैत्य मंदिर ईटों से निर्मित है और यह छत्तीसगढ़ का प्रथम व एकमात्र चैत्य मंदिर है जो महत्वपूर्ण पुरातात्विक धरोहर है!!भोंगापाल में प्राप्त द्विभुजी बुद्ध की प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में है। दोनों हाथ खंडित है। विशाल  ठोस प्रभामंडल और सिकुड़ा हुआ पेट है। मुखमंडल सौम्य अंडाकार है!!सप्तमातृका मंदिर के भग्नावशेष चैत्य मंदिर टीले से दो सौ गज की दूरी पर मिलते हैं। ईंटों से निर्मित एक मंदिर पश्चिमाभिमुखी है। इस मंदिर का समय 5वीं शताब्दी ईस्वी माना जाता है। इसके उत्तरी भाग में एक अन्य अत्यंत प्रचीन पूर्वाभिमुखी मंदिर के भग्नावशेष प्राप्त होते हैं यह मंदिर ईटों से निर्मित था, किन्तु यहां कोई प्रतिमा नहीं मिली है,प्राचीन टीले के दक्षिणी भाग में ईटों से निर्मित एक अन्य पूर्वाभिमुखी मंदिर है, जिसे यहां के लोग बड़े शिव मंदिर के नाम से पुकारते हैं. इस मंदिर में गर्भगृह है, गर्भगृह में जलहरी युक्त शिवलिंग है। जलहरी धरातल पर स्थित हैयहां के लोग बुद्ध की प्रतिमा को भोंगा देवता के नाम से भी पूजते हैं. यहां तांत्रिक शक्तियो की प्राप्त के लिये लोग शिवलिंग ओर बुद्ध की प्रतिमा का प्रयोग करने लगे थे. यहां उड़ी अफवाह के अनुसार लोगो ने सम्मोहन शक्ती की प्राप्त के लिये बुद्ध प्रतिमा की नाक ओर शिवलिंग का उपरी हिस्सा घिस कर प्राप्त दोनो चूर्ण को मिला कर सम्मोहन चूर्ण बनाने लग गये थे. ओर इस चूर्ण का खासकर प्रेमियो ने अपनी प्रेमिका को प्राप्त करने में उपयोग करने लग गये थे. विभिन्न तांत्रिको ने भी इन पुरा प्रतिमा को घिस कर सम्मोहन चूर्ण का नाम देकर बहुतो को मूर्ख बनाया. बुद्ध की प्रतिमा का नाक ओर शिवलिंग का उपरी हिस्सा पुरी तरह से सम्मोहन चूर्ण बनाने में घिस गया  किंतु बाद में गांव वालो ने एक कमरे में इस बुद्ध प्रतिमा को स्थापित कर दिया,बौद्ध चैत्यगृह तथा मंदिरों के भग्नावशेष  बस्तर में बौद्ध भिक्षुओं के आवागमन तथा निवास के प्रमाणों को पुष्टि प्रदान करते हैं। निश्चित ही तातकालिन समय में बस्तर में बौद्ध धर्म का बोलबाला रहा होगा. पास के जैपौर , बोरीगुम्मा एवँ आसपास के ओडिसा के गांव में बौद्ध प्रतिमाये एवँ बौद्ध अवशेष प्राप्त होते हैं.  दक्षिन बस्तर में वर्तमान में अभी तक बौद्ध धर्म के कोई ठोस अवसेष प्राप्त नहीं हुए खोज जारी हैं....