Friday, April 22, 2022

सेमर गाँव लिंगो धाम जात्रा --2022

 सेमर गाँव लिंगो 
( सेमरगांव प्रवेश द्वार )
जात्रा की यात्रा 2022 सेमर गाँव कांकेर जिला के अंतागढ़ ब्लॉक के आमाबेड़ा से अंतागढ़ रास्ते में आमाबेड़ा से लगभग 8 से 10 किलोमीटर दूर है बोडागाँव से आगे जाने पर स्वागत गेट है उसी साइड से लगभग 1 किलोमीटर या उससे थोडा कम दुरी पर लिगोदेव ठाना है यह गोंड जनजाति का विशेष दार्शनिक स्थलों में से एक है और इन स्थल का अपना अलग महत्व है सेमर गाँव का नाम पढने के पीछे भी एक तर्क कांफी लोक प्रिय और चर्चित है लिंगो देव के भाई लोग 6 और लिंगो के साथ 7 तो सेमरगाँव में सात सेमर का पेड़ एक कतार में है इसलिए इनका नाम सेमरगाँव पढ़ा ऐसा मान्यता है अब यह किवदंती कितनी तथ्यात्मक और तर्क संगत है कहना मुश्किल है पर आस्था का बहुत बढा केंद्र है और यंहा छत्तीसगढ़ के अलावा और बांकी राज्यों से भी लोग देव मेला में सम्मिलित होने आते है ,

पारी कुपार लिंगो की स्मृति में प्रसिद्ध देव जतरा (यात्रा)से शुरू होगा। यह तीन दिवसीय आयोजन छत्तीसगढ़ के उत्तर बस्तर कांंकेर जिले के वल्लेकनार्र (बड़ी आबादी वाला गांव) सेमरगांव आमाबेडा में किया जाता है । जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर इस गांव में होने वाले इस आयोजन को लेकर अभी से इलाके में चर्चा का बाजार गर्म रहता है। इस आयोजन में कई राज्यों से बड़ी संख्या में आदिवासी भाग लेंते है। तैयारियां बहुत ही खास होती है जात्रा शुरू होने से 1 साल पहले से तैयारी जोरो पर होती है वासी परंपरा में पारी कुपार लिंगो को प्रथम प्राकृतिक वैज्ञानिक माना जाता है। उन्हें संगीत के जनक के रूप में भी याद किया जाता है।

पहांदी पारी कुपार लिंगो कर्रसाड़ व देव जतरा प्रत्येक तीन वर्ष के बाद आयोजित किया जाता है। हालांकि आदिवासी बुजुर्ग बताते हैं 50 वर्ष पूर्व यह जतरा 12 साल में एक बार होता था। इसके पीछे मान्यता यह थी कि 12 साल बाद बांस के फूल खिलते थे, जो बारिश नहीं होने का प्रतीक था। लोग बरसात के लिए जतरा निकालते थे। बुजुर्ग यह भी मानते हैं कि जतरा की तिथि का निर्धारण आंगा पेन (स्थानीय देवताओं) की अनुमति से चन्द्रमा को देखकर किया जाता है। इसलिए तैयारी एक साल पहले ही शुरू हो जाती है,

मैं इस बारे में लगभग 50 वर्षीय जे.आर. मंडावी और एक सरकारी कर्मचारी, जो बोलेरो पर अपना आँगा  लाया है, से पूछता हूं। वे कहते हैं, ''हालांकि मैं घोड़ागांव से आता हूं, लेकिन हमारा देव कांकेर जिले के तेलावत गांव में है. हम इस अंग को अपने कंधों पर उठाकर पैदल यात्रा करते थे, लेकिन चूंकि हमारे परिवार में अब कम सदस्य हैं, इसलिए इतनी लंबी दूरी [करीब 80 किलोमीटर] तय करना मुश्किल है। इसलिए हमने आँगा देव  की अनुमति मांगी और [सभी आँगा  लिंगो देव से संबंधित हैं] ने हमें अनुमति दी, तो हम उसे इस वाहन में यहां ले आए।


कांकेर जिले के दोमहर्रा गांव के मैतूराम कुमेंटी जात्रा में अपने आँगा को कंधे पर बिठाकर लाए हैं, मुझसे कहते हैं, ''यह हमारे पूर्वजों का स्थान है. हम एक बूढ़ी माँ को साथ लाए हैं; वह लिंगो देव की रिश्तेदार हैं। हमारे देवता उन जगहों पर जाते हैं जहां उन्हें अन्य देवताओं से मिलने के लिए निमंत्रण मिलता है और उन्हें भी उनसे मिलने के लिए आमंत्रित किया जाता है।"इससे पहले कि वे पवित्र त्योहार स्थान में प्रवेश करें, जहां लिंगो का निवास माना



 जाता है, परिवार पेड़ों के नीचे आराम करते हैं। वे लकड़ी की आग पर चावल, सब्जियां, चिकन और अन्य सामान बनाते हैं और उबला हुआ रागी (बाजरा/मडीया) का पानी पीते हैं। कांकेर जिले के कोलियारी गांव के घस्सू मंडावी उनमें से एक हैं। वह कहते हैं, 'हम लिंगो देव के बड़े भाई मूड डोकरा लाए हैं। उनके छोटे भाई और उनके बेटे और बेटियां भी यहां हैं। यह एक पुरानी परंपरा है और लिंगो डोकरा के परिवार के सदस्य यहां एक-दूसरे से मिलने के लिए इकट्ठा होते हैं।"त्योहार के मैदान में फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की अनुमति नहीं है। हाल के दिनों में, विशेष रूप से दृश्य के  माध्यम से गोंड संस्कृति और परंपरा को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है। इसलिए वे सतर्क हो गए हैं। मैं त्योहार के मैदान के बाहर ही तस्वीरें लेना सुनिश्चित करता हूं। यहाँ छोटा सा प्रयाश है लिंगो देव जी के जात्रा जानकारी  के बारे में धन्यवाद !!



                                                                                                                         आज इतना ही  

                                                                                                                आपका प्रिय संजीव कुमार