Sunday, March 17, 2024

मैं प्रकृति प्रेमी हूॅं।


मैं प्रकृति प्रेमी हूॅं।

मुझे पहाड़ों के बीच घर बनाना है।
इसके लिए मैं कई पेड़ कटवाऊॅंगी।
कोई पूछे पहाड़ों के बीच क्यों?
तब मैं अपने पूर्वजों के प्रकृति प्रेम का मिसाल दूॅंगी।
पहाड़ों के बीच ठीक है मगर
पेड़ काटना प्रकृति प्रेमी होना कैसे पूछे वह,
तो मैं अपनी मूल सत से अनजान
आधुनिकता से लबरेज़
दिखावटी प्रकृति प्रेमियों के कंधे पर बंदूक रख गोली चलाऊॅंगी।
क्योंकि मैं अब वो मूल नहीं जो मूल रही
कभी मूल - सी, कभी परिवर्तित तो कभी प्रभावित हूॅं।
अपनी सहुलियत को मैं मूल का नाम दिया करती हूॅं।
मैं चीखती हूॅं कि गर्व है मुझे मैं मूल हूॅं।
मगर मूल की समझदारी को
मैं औसत से भी कम ऑंकती हूॅं।
पुरखा घर थे लकड़ी - मिट्टी के और कमरे कम
तभी तो पेड़ कमतर काट अधिक लगाए हैं।
मगर मैं आज की प्रकृति प्रेमी हूॅं।
पहाड़ों के हिस्सों को छान कर बंजर भूमि बना
पहाड़ों के बीच घर बनाऊॅंगी।
तस्वीर लेकर अपनी प्रकृति के करीब होने का दावा
हर रोज मैं स्टोरी में लगाऊॅंगी।
आने वाली पीढ़ी को सिरे पर रख
उसके लिए मैं मूल बंजर ज़मीन बचाऊॅंगी।
मेरे पुरखा पेन कहा करते हैं गोण्डी में
तुम लौटो मूल अपनी वही मूल सच्चाई लिए।
मैं भूल चुकी भाषा उसकी
उसके रास्ता दिखाने को अपने जीवन का बाधा समझ
उसे ही मनाते पायी जाती हूॅं।
मैं आज की प्रकृति प्रेमी हूॅं।
मुझे पहाड़ों के बीच घर बनाना है।
इसके लिए मैं कई पेड़ कटवाऊॅंगी।

- बस्तरहिन

"जागो मूल"