Thursday, February 20, 2020

I have always been a great lover of solitude


sanjiv kumar solitude  
I have always been a great lover of solitude.
When I look back at the years I have lived, the most memorable times are those that I spent all alone, on my own terms, without having anything or anyone to go back to.

There was no fixed time to wake up, no agenda, no worry about meals, no hurry to come back home, no responsibilities towards anyone else.

There was complete freedom to give as much time to work and pleasure as I wanted to. There was no necessity to worry about whose time was hijacked by whom. Most of the time, work was pleasure and there was no requirement to segregate the two.

There was no room for guilt, self-reproach, insecurities and doubts, because there was nobody else involved whose presence/absence could generate these.

My interactions with others were not dependent on anything other than my wish to interact with them. I was in no need of anyone.

My choices, thoughts and actions were unified by the sole reason of my existence. To grow, that is. There was no other motive.



And then, I became a solitude.man   A good man  is never alone..........................................

upsc tips ..


                                                    
BOOK LIST 
sanjiv kumar
BOOK-LIST There is no one book -list that can ensure to answer all questions in the examination. But yes, there are some books that can be considered sacred for UPSC, the ones that can ensure that at least 60% of the questions can be attempted after a good reading of them.

POLITICAL 

Polity -by LaxmikanthThis book has been updated so frequently and has been made as comprehensive as possible by the Author. This is a definite buy and worth every penny spent. 


HISTORY-

For Ancient and Medieval Indian History, the good old NCERT seems to be reliable source. Its author is RS Sharma. Some chapters in the above even serve as a great source for Art and Culture section.


For Modern Indian History, Spectrum's Modern History and Bipin Chandra's Indian Struggle for Independence are great. 


GEOGRAPHY- 

NCERTs of class 10th, 11th, and 12th are good starters to get a decent grasp over the discipline. However, this subject requires a supplement which can be in the form of any good coaching's class notes or any reputed publication's Geography Book for UPSC. 


Apart from this, one has to invest in a good Atlas. Map work related to India and the World needs to be studied well by aspirants.

ECONOMICS-

This is one subject where there is no good book available. Even the type of questions that can be asked cannot be ascertained. 


For basic economics concepts, a reading of MICROECONOMICS and MACROECONOMICS from class 12th NCERTS can be undertaken. This can be substituted by class notes of any good coaching institute or Economics Book for UPSC Exam of any reputed publisher.


But, apart from the above, a good reading of the current year's Budget, Economic Survey, and reports of World Bank, IMF and the like which gets discussed by the Indian Parliament or media becomes relevant for the exam.

ENVIRONMENT AND ECOLOGY-

A very hot topic these days from the exam point of view. The best source of some basic concepts and matters of the discipline is Shankar's Environment Book. However, mostly questions are asked on areas which are in news so a good command over current affairs is the only way out. Do pay attention to the Red Book Data, Climate Change and related issues and the other burning global level environment damaging matters. 

ART AND CULTURE-

The book I used was class 11th FIne Arts NCERT. Though, I agree that this a sketchy area and questions from this section are truly difficult. It also shows how Indian Educational System has somehow neglected our education in this regard that all of us find this portion difficult to attempt.
In the end, the above list is merely suggestive. It is possible that there may be even better sources available. I think knowing UPSC syllabus really well will be the only way that an aspirant can finally decide which book to buy and which one to leave!

बस्तर आज भी तलाशती उस महान गुण्डाधुर को – भूमकाल विद्रोह 1910

बस्तर आज भी तलाशती उस महान गुण्डाधुर को – भूमकाल विद्रोह 1910

बस्तर आज भी तलाशती उस महान गुण्डाधुर को – भूमकाल विद्रोह 1910

           एक उम्दा रणनीतिकार   युवा गुण्डाधुर,
  
कैसे और क्यों शुरू हुआ भूमकाल विद्रोह,
1876  गोड़  विद्रोह के अंत होने के बाद राजा भैरमदेव ने बस्तर पर राज किया, बस्तर की जनता को भैरमदेव पसंद नही थे, कुछ विद्रोहो के बाद बिल्कुल भी नही, उन्हें भैरमदेव के भाई कालेन्द्र सिंह पसंद थे। सम्पूर्ण बस्तर भैरमदेव  से ज्यादा कालेन्द्र सिंह का सम्मान करती थी, वे उस समय बस्तर के दीवान थे और आदिवासिओ पर प्रेम प्राप्त करने वाले वे एक मात्र सफल दीवान थे।
राजा भैरमदेव की 2 पत्नियां थी, किन्तु राजा का कोई पुत्र प्राप्त नही हुआ था, तो कालेन्द्र सिंह अपने आप को भावी  राजा के रूप में देखते थे। राजा भैरमदेव के अंतिम दिनों में उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई, जो कालेन्द्र सिंह को राजा बनने में एक बाधा प्रतीत हुई तो उन्होंने कुछ आदिवासी नेताओ को बुला कर यह अफवाह फैला दी कि कुंवर रुद्र प्रताप सिंह में राजा के अंश नही है और वे राजा बनने के योग्य नही है, जिसका समर्थन राजा की दूसरी पत्नी ने किया। इस बात से आदिवासिओ में रुद्र कुंवर के प्रति नफरत पैदा कर दी गई। राजा के अंतिम दिनों और परिस्तिथियों को देखते हुए किशोर रुद्र प्रताप को राजा घोषित कर दिया गया और इस बात से आहत होकर कालेन्द्र सिंह ने राजा के खिलाफ षड्यंत्र रचना चालू कर दिया।
राजा होने में बावजूद रुद्र प्रताप, कालेन्द्र सिंह से डरते थे। इस डर को मिटाने में लिए उन्होंने अपने पिता की तरह अंग्रेजों से हाथ मिला लिया और कालेन्द्र सिंह को दीवान पद से हटा दिया और पंडा बैजनाथ को नया दीवान बना दिया जो अंग्रेजों के चापलूस थे। इस फैसले ने आदिवासिओ को राजा के विरुद्ध जाने पर मजबूर कर दिया और विद्रोह को चिंगारी दी। इन परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए कालेन्द्र सिंह ने भूमकाल की भूमिका रची और उन्होंने नेतानार गांव के एक उत्साह से भरे युवक जिसे बाहरी लोगों से नफरत थी , गुण्डाधुर को युद्ध के नेतृत्व की लिए चुना। और आगे की रणनीति तैयार की।
एक उम्दा रणनीतिकार  नेतानार का युवा गुण्डाधुर,
राजा और अंग्रेज के खिलाफ गुण्डाधुर ने अलग-अलग जनजातियों से नेता चुन कर पूरे बस्तर को एक धागे में बांध दिया। इन नेताओं ने संगठन बनाये जो सभी जगह से विद्रोह का नेतृत्व कर सके, जिसमे डेब्रिधुर, सोनू माझी, मुंडी कलार, मुसमी हड़मा, धानु धाकड़, बुधरु और बुटुल थे जो गुण्डाधुर के विश्वसनीय थे। इन्होंने गांव-गांव जा कर लोगो को एकत्रित किया। विरोध चिन्ह के रूप में डारा-मिरी को उपयोग किया गया, जिसमें आम की टहनी पर लाल मिर्च को बांध दिया जाता था।
जनवरी 1910 में ये सारे संगठन सक्रिय हो चुके थे। 2 फरवरी 1910 को पुसपल के बड़े बाजार में बाहरी व्यपारियो को मारा गया, 5 फरवरी को पूरा बाजार लूट लिया गया और आदिवासियों में बटवा दिया गया। गुण्डाधुर ने ऐसे बहुत बाजार को लुटवा कर बटवा दिया। 13 फरवरी तक लगभग दक्षिण-पश्चिम बस्तर गुण्डाधुर के समर्थकों के कब्जे में थी। नेतानार का एक साधारण युवा अद्भुत संगठन करता सिद्ध हुआ। ये बात अंग्रेजो तक पहुच चुकी थी, अंग्रजो में सैन्य टुकड़ी के साथ कप्तान गेयर को राजा और दीवान की मदत के लिए भेजा। राजा, पंडा बैजनाथ और गेयर ने सभी आदिवासिओ को शांत करने की नीतियां बनाई।
22 फरवरी को एक विरोध में 15 मुख्य क्रांतिकारी नेता गिरफ्तार किये गए, परंतु अंग्रेज सैनिक गुण्डाधुर को पकड़ना छोड़ उनका चेहरा भी नही देख पाए। कप्तान गेयर को गुण्डाधुर के साहस का अनुमान हो गया था। गेयर ने बस्तर की माटी की कसम कहते हुए सारे अत्याचार को खत्म करने की  घोषणा की, जो अंत मे एक छलावा निकला ताकि वे गुण्डाधुर और उनके समर्थक को पकड़ सके। इसके बाद विद्रोह और बढ़ गया, महीनों तक गुण्डाधुर ने हर छोटी- बड़ी लड़ाइयों का नेतृत्व खुद किया, गेयर ने गुण्डाधुर को पकड़ने के कड़े निर्देश दिए। यह लड़ाइयों का क्रम काफी दिनों तक यूँ ही चलता रहा। करीब 14-15 लड़ाइयों में विजयी होने के बाद गुण्डाधुर ने कप्तान गेयर पर हमला कर दिया पर गेयर छिप कर भाग निकला
राजा,अंग्रेज,दीवान और अंग्रेजी सैनिक गुण्डाधुर के नाम से कांप उठते थे। पहली बार महीनों तक किसी आदिवासी ने अंग्रेजी रणनीतियों को भेदते हुए अपना परचम लहराया था।
24 मार्च 1910 को गुण्डाधुर और उनके समर्थक नेतानार में सारे लड़ाइयों का उत्साह मनाने के लिए एकत्रित हुए।  सोनू मांझी जो गुण्डाधुर के विश्वनीय थे, उसे अंग्रजो ने पैसे और सत्ता के लालच में खरीद लिया था। सभी आदिवासी युद्ध से थक चुके थे, भर पेट भोजन और महुवे के नशे में अपना संयम खो चुके थे। तब सोनू मांझी ने मौके का फायदा उठाते हुए, सारी जानकारी गेयर को दे दी। 25 मार्च को सुबह बहुत मात्रा में अंग्रेज सैनिक बदुको के साथ नेतानार के तरफ बढ़ गए , और शुरुवाती कस्बो में आदिवासियों पर गोली चलाना चालू कर दिया, गोलियों के आवाज़ ने गुण्डाधुर को सचेत कर दिया और वे बाकी लोगों को सचेत करने लग गए परंतु कोई धनुष-बाण छोड़ खुद खड़े होने लायक नही थे। गुण्डाधुर ने अपनी तलवार उठायी और घने जंगलों की ओर बढ़ गए , वे जानते थे कि उनके पकड़े जाने से महान भूमकाल का पूर्ण अंत हो जाएगा।
गेयर ने सभी आदिवासिओ पर देखते ही गोली चलाने और प्रमुख नेताओं को बंदी बनाने का हुक्म दिया। 21 माटी पुत्र शहीद हो गए, डेब्रिधुर और उनके प्रमुख 7 क्रंतिकारी को बंदी बना लिया गया जिसमें माड़िया मांझी भी शामिल थे , जिन्हें कुछ दिन बाद नगर के बीच इमली के पेड़ पर फांसी दे दी गयी। जिससे भूमकाल शांत हो चुका था।
क्या हुआ भूमकाल की शांति के बाद ?
इन सारी घटनाओ के बाद कालेन्द्र सिंह के मित्रो ने आदिवासियों के साथ मिलकर अंग्रेजो के साथ संधि की जिसमे अवेध घुसपैठ, आदिवासिओ पर अत्याचार का अंत और बस्तर की भूमि पर शांति की स्थापना थी। जो गुण्डाधुर का स्वप्न्न था।
1910 के इस महान घटना में न गुण्डाधुर मारे गए न पकड़े गए, अंग्रेजी फाइल यह कह कर बन्द कर दी गयी कि कोई बताने के समर्थ नही है कि गुंडाघुर कौंन और कहां है। बस्तर के जंगल के चीखते सन्नाटे आज भी अपने पुत्र गुण्डाधुर का इंतज़ार कर रही है।
वर्तमान के छत्तीसगढ़ में गुण्डाधुर स्मृति में साहसिक कार्य एवं खेल क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए गुण्डाधुर सम्मान स्थापित किया गया है। 

राजा गुरू बालकदास जी के सतनाम आंदोलन

      राजा गुरू बालकदास जी के सतनाम आंदोलन : 

परम् पूज्य बाबा गुरू घासीदास जी के द्वितीय पुत्र राजा गुरू बालकदास जी के सतनाम आंदोलन का असर इतना अधिक हुआ कि अंग्रेजो ने सन् १८२५ में पहली बार शिक्षा का द्वार हिन्दु धर्म में शुद्र कहे जाने वालो के लिये खोले । गुरू बालकदास जी के एकता और समरसता के आंदोलन से अंग्रेज प्रभावित होकर उन्हे राजा घोषित कर हांथी भेंट किये साथ ही अंग रक्षक रखने कि अनुमति भी दिये । शिक्षा के क्षेत्र में हुये इस परिवर्तन कानून जिसका पुरोधा हमारे गुरू रहे, उन्ही के कारण ही १८४८ में महाराष्ट्र के पूना शहर में माली समाज में जन्मे ज्योतिराव फूले (जिन्हे अम्बेडकर जी अपना गुरू मानते थे) को पढ़ने का मौका मिला,फिर आगे चलकर इन्होने सत्य शोधक समाज की स्थापना १८७३ में किये । सतनाम आंदोलन को बढ़ते देख ब्राम्हण वाद तिलमिला उठे और मानव-मानव एक समान की भावना से ओत-प्रोत धर्म सतनाम को तोड़ने के लिये, सतनाम धर्म के समानांतर रामनामी सतनामी और सूर्यवंशी सतनामी पंथ खड़ा कर दिये । और िफर सतनामी समाज में नाना प्रकार के रिति-रिवाज, रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार के मानने वाले हो गये और यही वह सच्चा कारण है जिसके वजह से हमारी ताकत कमजोर हुई । साथीयो जब समाज ही अलग अलग पंथो में बटकर अलग अलग विचार धारा को मानने लगे है तो एक मत और एक सिद्धांत की बात करना ही गलत है । गुरूजी के सिद्धांत को त्याग अलग हो गये तो िफर किसी ब्यक्ति विशेष के सोंच का औचित्य ही क्या है । लेकिन आज हमे वह कमजोर कड़ी का पता चल चूका है तब हमारी जिम्मेदारी हो जाति है कि उन बुराईयो का त्याग करके जो गुरू जी ने हमारे लिये सच्चे रास्ते बनाये हैं उसमें सभी को चलने-चलाने का कार्य करना है । जब हम सब, फिर से सतनाम धर्म के रास्ते पर चलकर एकता और समरसता का ब्यवहार करेगें तो हमारी ताकत विशाल हो जायेगी,फिर हम सतनामी समाज को वह स्थान पर देख सकते है जो आज के बुद्धजीवी लोगो का सपना है । हमें गर्व है कि हम सतनामी कुल में जनम लिये जिन्होने दुनियाँ को एकता और भाईचारा का संदेश दिया है । और शिक्षा का द्वार सभी के लिये खोलने में अहम भूमिका अदा किये । सतनामी समाज तो एक है परन्तु राजनैतिक पार्टी अनेक तो भला ऐसा कैसे हो सकता है कि सभी के सभी सतनामी भाई किसी एक ही पार्टी से जुड़े, इस बात को हमें समझना होगा । गुरू जी के सतनाम आंदोलन को तोड़ कर रामनामी, सूर्यवंशी सहित अनेको संप्रदायो में विभाजित कर दिये तो किसी एक पार्टी के विचार को माने यह संभव ही नही है। हाँ परन्तु कोई ऐसी पार्टी हो जो सिर्फ सतनामी एवं सतनाम धर्म की बात को लेकर आगे आये तब की बात अलग है । अगर सतनामी समाज को एक सुत्र में बांधा जा सकता है तो वह सिर्फ सतनामी एवं सतनाम धर्म की बात को आगे बढ़ाकर ही किया जा सकता है, इसलिये सबसे पहले प्रयास यह होना चाहिये कि जो सतनामी समाज से अलग होकर पंथ बनाये हैं उन्हे पुनः सतनामी समाज के विचार धारा से जोड़ना ताकि सतनामी और अन्य विचार धारा वाले सतनामी में एकरूपता आये | 

गुरु घासी दास बाबा जी

 गुरु घासी दास बाबा  जीवन दर्शन 

 संजीव कुमार -
सन 1672  में वर्तमान हरियाणा के नारनौल नामक स्थान पर साध बीरभान और जोगीदास नामक दो भाइयों ने सतनामी साध मत का प्रचार किया था। सतनामी साध मत के अनुयायी किसी भी मनुष्य के सामने नहीं झुकने के सिद्धांत को मानते थे। वे सम्मान करते थे लेकिन किसी के सामने झुक कर नहीं। एक बार एक किसान ने तत्कालीन मुगल बादशाह औरंगजेब के कारिंदे को झुक कर सलाम नहीं किया तो उसने इसको अपना अपमान मानते हुए उस पर लाठी से प्रहार किया जिसके प्रत्युत्तर में उस सतनामी साध ने भी उस कारिन्दे को लाठी से पीट दिया। यह विवाद यहीं खत्म न होकर तूल पकडते गया और धीरे धीरे मुगल बादशाह औरंगजेब तक पहुँच गया कि सतनामियों ने बगावत कर दी है। यहीं से औरंगजेव और सतनामियों का ऐतिहासिक युद्ध हुआ था। जिसका नेतृत्व सतनामी साध बीरभान और साध जोगीदास ने किया था। यूद्ध कई दिनों तक चला जिसमें शाही फौज मार निहत्थे सतनामी समूह से मात खाती चली जा रही थी। शाही फौज में ये बात भी फैल गई कि सतनामी समूह कोई जादू टोना करके शाही फौज को हरा रहे हैं। इसके लिये औरंगजेब ने अपने फौजियों को कुरान की आयतें लिखे तावीज भी बंधवाए थे लेकिन इसके बावजूद कोई फरक नहीं पड़ा था। लेकिन उन्हें ये पता नहीं था कि सतनामी साधों के पास आध्यात्मिक शक्ती के कारण यह स्थिति थी। चूंकि सतनामी साधों का तप का समय पूरा हो गया था और वे गुरू के समक्ष अपना समर्पण कर वीरगति को प्राप्त हुए। जिन लोगों का तप पूरा नहीं हुआ था वे अपनी जान बचा कर अलग अलग दिशाओं में भाग निकले थे। जिनमें घासीदास का भी एक परिवार रहा जो कि महानदी के किनारे किनारे वर्तमान छत्तीसगढ तक जा पहुचा था। जहाँ पर संत घासीदास जी का जन्म हुआ औऱ वहाँ पर उन्होंने सतनाम पंथ का प्रचार तथा प्रसार किया। गुरू घासीदास का जन्म 18  दिसम्बर  सन 1756 में रायपुर जिले के गिरौदपुरी में एक  साधारण परिवार में पैदा हुए थे। गुरु जी के पिता बाबा महगू दास व गुरु माता अमरौतिन है उन्होंने हिन्दु धर्म की कुरीतियों पर कुठाराघात किया। क्यों कि ब्राम्हणों और मन्दिर के पुजारियों द्वारा हिन्दुओं के धार्मिक शोषण का विरोध करने के कारण उन्हें समाज से दूर करने का यही मार्ग उन लोगों को सूझा था। जिसका असर आज तक दिखाई पड रहा है। उनकी जयंती हर साल पूरे छत्तीसगढ़ में 18 दिसम्बर को मनाया जाता हैगुरू घासीदास जातियों में भेदभाव व समाज में भाईचारे के अभाव को देखकर बहुत दुखी थे। वे लगातार प्रयास करते रहे कि समाज को इससे मुक्ति दिलाई जाए। लेकिन उन्हें इसका कोई हल दिखाई नहीं देता था। वे सत्य की तलाश के लिए गिरौदपुरी के जंगल में छाता पहाड पर समाधि लगाये इस बीच गुरूघासीदास जी ने गिरौदपुरी में अपना तपस्या स्थल  छाता पहाड़  पर बनाया तथा सोनाखान के जंगलों में सत्य और ज्ञान की खोज के लिए ६ माह लम्बी तपस्या  कीगुरु घासीदास बाबा जी सतनाम आध्यात्मिक  ज्ञान प्राप्त होने के बाद सम्पूर्ण मानव समाज को सत्य का दर्शन कराने के लिए  भारत भूमि में सतनाम रावटी चलाये ! गुरु घासीदास भारत के छत्तीसगढ़ राज्य की संत परंपरा में सर्वोपरि हैं। बाल्याकाल से ही गुरु घासीदास बाबा जी के हृदय में वैराग्य का भाव प्रस्फुटित हो चुका था। समाज में व्याप्त पशुबलि तथा अन्य कुप्रथाओं का ये बचपन से ही विरोध करते रहे। समाज को नई दिशा प्रदान करने में आप अतुलनीय योगदान दिया ..गुरु घासीदास का जन्म ऐसे समय हुआ जब समाज में छुआछूत, ऊंचनीच, झूठ-कपट का बोलबाला था, बाबा ने ऐसे समय में मानव समाज  को एकता, भाईचारे तथा समरसता का संदेश दिया। एकता के शुत्र में बाधा !
गुरु घासी दास बाबा जी की शिक्षा - बाबा जी को ज्ञान की प्राप्ति छतीशगढ के गिरौदपुरी  में स्थित छाता पहाड     औरा धौरा पेड़ के नीचे तपस्या करते वक्त आध्यात्मिक ज्ञान  प्राप्त हुआ सत्य से साक्षात्कार करना ही गुरु घासीदास के जीवन का परम लक्ष्य था। 'सतनाम पंथ' का संस्थापक भी गुरु घासीदास को ही माना जाता है | गुरु घासीदास की सत्य के प्रति अटूट आस्था की वजह से ही इन्होंने बचपन में कई चमत्कार दिखाए, जिसका लोगों पर काफी प्रभाव पड़ा।  गुरु घासीदास ने समाज के लोगों को सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा दी। उन्होंने न सिर्फ सत्य की आराधना की, बल्कि समाज में नई जागृति पैदा की और अपनी तपस्या से प्राप्त ज्ञान और शक्ति का उपयोग मानवता की सेवा के कार्य में किया। इसी प्रभाव के चलते लाखों लोग बाबा के अनुयायी हो गए। फिर इसी तरह छत्तीसगढ़ में 'सतनाम पंथ' की स्थापना हुई। इस संप्रदाय के लोग उन्हें अवतारी पुरुष के रूप में मानते हैं। गुरु घासीदास के मुख्य रचनाओं में उनके सात वचन सतनाम पंथ के 'सप्त सिद्धांत' के रूप में प्रतिष्ठित हैं। गुरू घासीदास बाबाजी ने समाज में व्याप्त जातिगत विषमताओं को नकारा। उन्होंने ब्राम्हणों के प्रभुत्व को नकारा और कई वर्णों में बांटने वाली जाति व्यवस्था का विरोध किया। उनका मानना था कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक रूप से समान हैसियत रखता है। गुरू घासीदास ने मूर्तियों की पूजा को वर्जित किया। वे मानते थे कि उच्च वर्ण के लोगों और मूर्ति पूजा में गहरा सम्बन्ध है। गुरु  घासीदासबाबा जी  पशुओं से भी प्रेम करने की सीख देते थे। वे उन पर क्रूरता पूर्वक व्यवहार करने के खिलाफ थे। सतनाम पंथ के अनुसार खेती के लिए गायों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये। गुरू घासीदास के संदेशों का समाज के पिछड़े समुदाय में गहरा असर पड़ा। सन् 1901 की जनगणना के अनुसार उस वक्त लगभग 4 लाख लोग सतनाम पंथ से जुड़ चुके थे और गुरू घासीदास के अनुयायी थे। छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह पर भी गुरू घासीदास के सिध्दांतों का गहरा प्रभाव था। गुरू घासीदास के संदेशों और उनकी जीवनी का प्रसार पंथी गीत व नृत्यों के जरिए भी व्यापक रूप से हुआ। यह छत्तीसगढ़ की प्रख्यात लोक विधा भी मानी जाती है। 
 उपदेश - सतगुरु गुरु  घासीदास जी की मुख्य उपदेश  हैं-
  1. जीव हत्या नहीं
  2. सतनाम् पर विश्वास रखना करना।
  3.   मांसाहार नहीं करना।
  4.   चोरी, जुआ से दूर रहना।
  5.  नशा सेवन नहीं करना।
  6.  जाति-पाति के प्रपंच में नहीं पड़ना।
  7.  व्यभिचार नहीं करना।
  8. मानव मानव एक सामान 
  9. सत्य अहिंसा के मार्ग !
  10. प्रेम की भावना जागृत !
  11. आध्यात्मिक ज्ञान !
  12. ध्यान !
  13. एकता समानता मानव समाज में !
  14. जीवन  को सादगी पूर्ण जीने की रह! 
  15. प्रकृति से जुड़े !
  16. आत्म बोध !
  17. होश पूर्वक कार्य!  
  18. स्वेत खाम महत्व! 
  19. गुरु के वचन का पालन!  
  20. अंधविस्वास में नहीं पड़ना!  
गुरु जी के सत उपदेश  सतनाम पंथ के  सिद्धांत के रूप में प्रतिष्ठित हैं, जिसमें सतनाम पर विश्वास, मूर्ति पूजा का निषेध, वर्ण भेद से परे, हिंसा का विरोध, व्यसन से मुक्ति, परस्त्रीगमन की वर्जना और दोपहर में खेत न जोतना हैं। इनके द्वारा दिये गये उपदेशों से समाज के असहाय लोगों में आत्मविश्वास, व्यक्तित्व की पहचान और अन्याय से जूझने की शक्ति का संचार हुआ। सामाजिक तथा आध्यात्मिक जागरण की आधारशिला स्थापित करने में ये सफल हुए और छत्तीसगढ़ में इनके द्वारा प्रवर्तित सतनाम पंथ के आज भी लाखों अनुयायी हैं |
गुरु जी अपने उपदेश में कहते है की मैं एक ऐसा धर्म देना चाहता हूं, जो श्रद्धा का भी उपयोग करे और संदेह का भी; सतनाम पिता तक  श्रद्धा से भी पहुंचा जा सकता है और संदेह से भी पहुंचा जा सकता है। क्योंकि सभी रास्ते उस तक ले जाते हैं। अध्यात्म के लोगो को प्रेरित करते सही मर्म बताते है या गुरु जी के सत  उपदेश  है 
समाज सुधार  - गुरु घासीदासबाबा जी  ने समाज में व्याप्त कुप्रथाओं का बचपन से ही विरोध किया। उन्होंने समाज में व्याप्त छुआछूत की भावना के विरुद्ध 'मनखे-मनखे एक समान' का संदेश दिया। छत्तीसगढ़ राज्य में गुरु घासीदास की जयंती 18 दिसंबर से माह भर व्यापक उत्सव के रूप में समूचे राज्य में पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है। इस उपलक्ष्य में गाँव-गाँव में मड़ई-मेले का आयोजन होता है। गुरु घासीदास का जीवन-दर्शन युगों तक मानवता का संदेश देता रहेगा। ये आधुनिक युग के सशक्त अध्यात्मदर्शी गुरु थे। इनका व्यक्तित्व ऐसा प्रकाश स्तंभ है, जिसमें सत्य, अहिंसा, करुणा तथा जीवन का ध्येय उदात्त रुप से प्रकट है। छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में सामाजिक चेतना एवं सामाजिक न्याय के क्षेत्र में 'गुरु घासीदास सम्मान' स्थापित किया है। गुरु घासी दस बाबा जी ने सम्पूर्ण समाज में सतनाम का  दर्शन कराया। !
मुख्य कार्य - गुरु घासीदास ने विशेष रूप से छत्तीसगढ़ राज्य के लोगों के लिए सतनाम का प्रचार किया।  गुरु घासीदास बाबा जी  के बाद, उनकी शिक्षाओं को उनके पुत्र  धर्म गुरु बालकदास बाबा जी  ने लोगों तक पहुँचाया। गुरु घासीदास ने छत्तीसगढ़ में सतनामी संप्रदाय की स्थापना की थी इसीलिए उन्हें ‘सतनाम पंथ का संस्थापक माना जाता है गुरु घासी दास बाबा जी  का समाज में एक नई सोच और विचार उत्पन्न करने के बहुत बड़ा हाँथ है। घासीदास जी बहुत कम उम्र से पशुओं की बलि, अन्य कुप्रथाओं जैसे जाती भेद-भाव, छुआ-छात के पूर्ण रूप से खिलाफ थे। उन्होंने पुरे छत्तीसगढ़ के हर जगह की यात्रा की और इसका निदान  निकालने का पूरा प्रयास किया !आप  सतनाम  यानी की सत्य से लोगों को साक्षात्कार कराया और सतनाम का प्रचार किया। उनके अनमोल विचार और सकारात्मक सोच,  पुरे मानव समाज के लिए उपदेश दिए  आपने  सत्य के प्रतिक के रूप में ‘जैतखाम को दर्शाया – यहाँ २१ हाँथ लकड़ी सरई  का  होता है जिसमे २ हुक ५ हाँथ बांस का डंडा जिसमे चौउकोर  एक सफ़ेद झंडा फहराता है। इसके सफ़ेद रंग को सत्य और शांति  का प्रतीक है। बाबा जी सतनाम आंदोलन पुरे सम्पूर्ण भारत देश में दिखने लगा और हर समाज के बाबा जी के सत महिमा को देखते हुए सतनाम पंथ धारण करने लगे  गुरु जी  ने सत्य का पदार्पण किया वे बाबा जी शांति के मार्ग पर चलकर क्रांति किये   मानव को अपने  सत उपदेश  में कहते थे की मानव सत्य के मार्ग पर चल कर सतगुरु परमात्मा को पा सकता है | 
  
                                                                -  साहेब सतनाम -