Thursday, February 20, 2020

"मैंने हमेशा एकांत को प्रेम किया है...



मैंने हमेशा एकांत को प्रेम किया है।
जीवन के उन वर्षों को जब पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो सबसे स्मरणीय वे पल ही प्रतीत होते हैं जो मैंने पूरी तरह अकेले, अपनी शर्तों पर जिए। न जागने का तय समय था, न दिनचर्या का कोई दबाव, न खाने-पीने की चिंता, न कहीं लौटने की हड़बड़ी। लेकिन मन में देश,समाज और परिवार के प्रति उत्तरदायित्व का भाव है ।

एक सम्पूर्ण स्वतंत्रता थी—काम और आनंद को अपनी इच्छानुसार जितना चाहा, उतना समय देने की। न किसी की घड़ी चुराने का भय, न अपने समय को बाँटने की विवशता। प्रायः काम ही आनंद है —उन दोनों के बीच कोई रेखा खींचने की आवश्यकता नहीं पड़ती है ।


न अपराधबोध, न आत्म-निंदा, न असुरक्षा और न ही कोई संशय—क्योंकि जीवन में कोई और नहीं था जिसकी उपस्थिति या अनुपस्थिति इन भावनाओं को जन्म देती।
मेरे संबंध, मेरी मर्ज़ी से है —ना ज़रूरत से, ना मजबूरी से। किसी की आवश्यकता नहीं  मुझे।

मेरे विचार, चुनाव और कर्म—सब एक सूत्र में बंधे है , मेरे अस्तित्व के एकमात्र उद्देश्य से—विकास।
जीवन समय एक स्पष्ट, निर्मल जलधारा है , जिसमें मैं बिना किसी विघ्न के, गहराई तक उतर सकता हूँ  ।

संजीव कुमार ( एम.ए इतिहास )  

No comments:

Post a Comment